Thursday, April 22, 2010

इस्लाम धर्म के प्रमुख मत व विश्वास

इस्लाम की परिभाषा
इस्लाम शब्द अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है अमन,शान्ति,अच्छाई,आत्मसमर्पण व सलामती.
संक्षेप में ईश्वर के आदेशों और ईश्वर के पैगम्बर हजरत मुहम्मद सल्ल: की शिक्षाओं को इस्लाम कहते है.
और इस्लाम के अनुयायी को मुस्लिम या मुसलमान कहते हैं.
इस्लाम के प्रमुख मत व विश्वास
१. ईश्वर एक है जिसको अरबी में अल्लाह,फ़ारसी में खुदा और हिन्दी में ईश्वर कहते हैं.
२. इबादत (पूजा) के योग्य केवल ईश्वर है.ईश्वर के अलावा और कोई इबादत के योग्य नहीं.
३. ईश्वर ही सृष्टि का रचयिता है,उसने ही पूरे संसार को पैदा किया.उसने ही सभी मनुष्यों औरजीवों को
जीवन दिया. ईश्वर सर्वशक्तिमान है.ईश्वर सब का पालनहार है.
४. ईश्वर ने समय समय पर संसार में मनुष्यों के मार्गदर्शन के लिए अपने दूत भेजे.ये सभी दूतमनुष्यों
में से ही थे.ये ईश्वर का सन्देश लोगों तक पहुंचाते थे.इनको नबी या पैगम्बर कहते हैं.जिन पैगम्बरों को
ईश्वर ने धर्मग्रन्थ प्रदान किये उनको रसूल कहते हैं.प्रमुख रसूल चार है.हजरतमूसा अलैहिस्सलाम इनको तौरेत,हजरत दाउद अलैहिस्सलाम इनको ज़बूर,हजरत ईसा अलैहिस्सलामइनको इंजील और हजरत
मुहम्मद सल्ल: इनको कुरआन प्रदान किया गया.
५. हजरत मुहम्मद सल्ल: ईश्वर के अंतिम रसूल व पैगम्बर है.उनके बाद क़यामत(प्रलय) तककोई दूसरा
पैगम्बर नहीं आ सकता.
६. ईश्वर द्वारा रसूलों को प्रदान किये गए सभी आसमानी किताबें(धर्मग्रन्थ) सत्य है.ईश्वरीय धर्मग्रन्थ
चार है-तौरेत,ज़बूर,इंजील और कुरआन. १.तौरेत हजरत मूसा अलैहि: को प्रदान की गयी ये यहूदियों का
प्रमुख धर्मग्रन्थ है.२.ज़बूर ये दाउद अलैहि: को प्रदान की गयी.ये यहूदियों और ईसाईयों दोनों का धर्मग्रन्थ
है. ३.इंजील ईसा अलैहि: को प्रदान की गयी.ये ईसाईयों का प्रमुख धर्मग्रन्थ है.ईसाई इसेबाइबल कहते हैं.
कुरआन को छोड़कर बाकी तीनों धर्मग्रंथों में यहूदियों और ईसाईयों ने बदलाव करदिए हैं.अब ये तीनो
धर्मग्रन्थ अपने मूल रूप में नहीं है.इसलिए इस्लाम में ये तीनो धर्मग्रन्थ मान्यनहीं है. इन तीनों धर्मग्रंथों
के आदेश और शिक्षाओं को मानना मुसलमानों के लिए वर्जित है.
७. कुरआन ईश्वरीय ग्रन्थ है.इसका एक एक शब्द ईश्वर की वाणी है.इसका एक भी शब्द किसी पैगम्बर
या किसी दुसरे व्यक्ति का नहीं है.कुरआन अंतिम ईश्वरीय ग्रन्थ है.
८. फ़रिश्ते-ईश्वर की एक ऐसी अदृश्य मखलूक (प्राणी) है जिनको ईश्वर ने नूर(प्रकाश) से पैदा किया.
इसलिए ये मनुष्यों को दिखाई नहीं देते.ये ईश्वर की हर आज्ञा का पालन करते हैं.इनको ईश्वर ने विभिन्न
कामों में लगा रखा है.फ़रिश्ते पूरी तरह से पाप से मुक्त है.
९. अच्छी या बुरी किस्मत ईश्वर की देन है.जीवन में जो कुछ अच्छा या बूरा होता है सब ईश्वर की तरफ
से है.जीवन में जो कुछ हो रहा है या जो कुछ होने वाला है सबको ईश्वर पहले से जानता है.मनुष्य जो कुछ
अच्छा या बूरा करता है वो अपनी मर्ज़ी से करता है लेकिन इसकी अनुमति ईश्वर की दी हुई है.मनुष्यों अपने
पापों और कुकर्मों का खुद जिम्मेदार है क्योंकि उन्हें करने या न करने का निर्णय ईश्वर ने मनुष्यों को दिया है.
१०. मरने के बाद और क़यामत(प्रलय) से पहले एक और दुनिया है.मरने के बाद सभी मनुष्यों को वहीँ रहना
पड़ता है.वहां मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार किसी को सुख मिलता है और किसी को दुःख और तकलीफ.
११. एक दिन ये पृथ्वी व आकाश बल्कि पूरा ब्रह्माण्ड नष्ट हो जायेगा.इसी दिन का नाम क़यामत या प्रलय है.
प्रलय कब आएगा इसका सही ज्ञान केवल ईश्वर को है लेकिन ईश्वर ने कुरआन में और पैगम्बर मुहम्मद सल्ल:
ने हदीस में कई निशानियाँ बताई है जो प्रलय आने से पहले जाहिर होंगी.
१२. ईश्वर ने अपनी आज्ञाओं का पालन करने वालों के लिए जन्नत(स्वर्ग) बनाया है और आज्ञाओं का पालन न
करने वालों,दुष्टों व पापियों के लिए जहन्नम(नरक) बनाया है.
१३. प्रलय आने के बाद सभी मनुष्य मर जायेंगे.फिर सृष्टि के आरम्भ से लेकर प्रलय आने तक जितने भी मनुष्य
हुए उन सबको वापस जीवन दिया जायेगा.फिर उनके कर्मों का हिसाब होगा .जिनके कर्म अच्छे होंगे उनको स्वर्ग
में रखा जायेगा और जिनके कर्म बुरे होंगे उनको नरक में डाल दिया जायेगा.

इस्लाम मत के अनुसार ऊपर बताई गयी सभी बातों पर इस्लाम के अनुयायी को दृढ व पूर्ण विश्वास होना
अनिवार्य है.इनमें से एक भी बात का इनकार करने वाला व्यक्ति इस्लाम से बेदखल(निष्कासित) है.

1 comments:

DR. ANWER JAMAL said...

nice post .
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vedquran.blogspot.com

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